पटना। बिहार की राजनीति में हाल ही में सामने आई एक तस्वीर आने वाले चुनावी तूफान का इशारा दे रही है। क्या 20 साल बाद बिहार का चुनावी परिदृश्य पूरी तरह बदलने वाला है? इस तस्वीर को देखकर खुद समझा जा सकता है कि राज्य की राजनीति में अब कुछ असामान्य होने वाला है।

पटना में कांग्रेस और बीजेपी कार्यकर्ताओं की भीड़ यह संकेत दे रही है कि इस बार संघर्ष सिर्फ बैलेट बॉक्स तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि घर-घर और सड़कों तक फैलेगा। पीएम मोदी के अपमान के मामले को लेकर शुक्रवार को राजधानी में जमकर हंगामा हुआ। दोनों दलों के कार्यकर्ता आमने-सामने आए, लाठियां चलीं और पत्थरबाजी भी हुई। स्थिति पर काबू पाने के लिए पुलिस को बीच में उतरना पड़ा।

क्या यह बिहार चुनाव से पहले हिंसक संघर्ष की शुरुआत है? क्या आने वाले दिनों में इससे भी बड़ी घटनाएं हो सकती हैं?

इस घटना ने बिहार की राजनीति को 2000 से पहले के दौर की याद दिला दी है, जब चुनाव सिर्फ वोटिंग का अवसर नहीं, बल्कि संघर्ष, गोलियां, बमबारी, बूथ कब्जा और हिंसा का पर्याय बन चुके थे। उस समय मतदाताओं को बंदूक की नोंक पर वोट डालने या घर में रहने के लिए मजबूर किया जाता था। चुनाव आयोग को भी विशेष सुरक्षा बल तैनात करने पड़ते थे।

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