राजस्थान के झालावाड़ में शुक्रवार की सुबह बड़ा हादसा हो गया. मनोहरथाना के पिपलोदी गांव के राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय के भवन की छत गिर गई. इसमें 7 बच्चों की मौत हो गई.
राजस्थान के झालावाड़ ज़िले के मनोहरथाना ब्लॉक स्थित पिपलोदी गांव में शुक्रवार (25 जुलाई) की सुबह एक हृदयविदारक हादसा हुआ, जब राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय की जर्जर छत गिर गई और उसके साथ ही दीवार भी ढह गई। इस भयावह घटना में अब तक 7 मासूम बच्चों की जान जा चुकी है, जबकि कई अन्य बच्चे अभी भी मलबे में दबे होने की आशंका है।
यह हादसा कोई प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि सरकारी लापरवाही और शिक्षा व्यवस्था की बदहाल स्थिति का नतीजा है। वर्षों से जर्जर भवन में चल रहा यह स्कूल प्रशासन की आंखों के सामने था, लेकिन समय रहते मरम्मत या पुनर्निर्माण के कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए।
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने घटना के बाद जांच के आदेश देकर अपनी जिम्मेदारी पूरी मान ली है, लेकिन सवाल उठता है कि क्या सरकार को पहले से स्कूलों की हालत की जानकारी नहीं थी? हादसे के बाद अफरा-तफरी मच गई और अब युद्ध स्तर पर बचाव कार्य चलाया जा रहा है, लेकिन क्या बच्चों की जान जाने के बाद जागना ही सिस्टम की नीति बन चुकी है?
शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने बच्चों की मौत की पुष्टि कर कलेक्टर को निर्देश जरूर दिए हैं, लेकिन यह महज़ औपचारिकता लगती है। क्या ऐसी घटनाओं के बाद केवल बयानबाज़ी और जांच के आदेश ही सरकार की ज़िम्मेदारी बनकर रह गई है?
झालावाड़ के एसपी अमित कुमार बुडानिया और जिला कलेक्टर घटनास्थल पर पहुंचे जरूर हैं, लेकिन यह कार्रवाई भी हादसे के बाद की है। राहत कार्यों में अब स्थानीय लोग और प्रशासन मिलकर मलबा हटाने में लगे हैं, जेसीबी मशीनें लगाई गई हैं, और घायल बच्चों को अस्पताल भेजा गया है — मगर यह सब कुछ बहुत देर से हो रहा है।
सरकारी स्कूलों की उपेक्षा, जर्जर इमारतों में पढ़ते बच्चे, और मरम्मत के नाम पर कागज़ी योजनाएं — ये सब मिलकर एक और मासूम त्रासदी को जन्म दे चुके हैं। क्या सरकार अब भी जागेगी, या अगली दुर्घटना तक इंतज़ार करेगी?